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गजल_-_ दायरे मे बंद है

Amita's blog
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इंसानियत और मानवता, अब किताबों के छंद है |
आदमी आज कितना, अपने दायरे में बंद है ||

अब किसी की क्या पड़ी,आप अपना ही बहुत |
चार रोटी खा चुका और आठ डिब्बा बंद है ||

आतंक के नाम पर कितने जख्म हर दिन मिल रहे |
पर क्यूँ डरते है जनाब , सुरक्षा चाकचौबंद है ||

मंदिरों के बाहर देखो, गरीबी की जंग है |
पर अंदर बैठा भगवान , सोने चांदी मे बंद है ||

हर रूप मे पूजनीय है , बेटी रूप छोडकर |
क्या सोच है खुली या क्या सोच बंद है ||

सब कुछ है उलट पुलट, सीधा अब कुछ भी नहीं |
नजरे अब मिलाये कैसे , नजरे सबकी बंद है ||

राजा हो या रंक , गति सबकी एक समान |
चैन से रह लीजिये , जब तक पिंजरा बंद है ||

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