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विगत 28 दिसं को दैनिक जागरण समाचारपत्र मे प्रकाशित – ” उद्योगपति पकड़ेंगे परदेश की राह ” पढ़कर मन अत्यधिक खिन्न हो गया, जिसमे लिखा था कि आज देश के मौजूदा माहौल मे बड़े -२ उद्योगपति अपना बोरिया -बिस्तर बांधकर निकल लेना चाहते है | इसका कारण भ्रष्टाचार व लालफीताशाही है | एक बहुत बड़े ग्रुप के चेयरमैन का तो यहाँ तक कहना है यदि भारत में आप ईमानदार व्यवसाई हैं तो कारोबार शुरू करना ही बहुत बड़ी दिक्कत है और यहाँ कोई बड़ा निवेश अगर आप करना चाहते हैं तो रोड़े ही रोड़े हैं , किसी भी स्तर पर पारदर्शिता नहीं है | भ्रष्टाचार , योजनाओं की मंजूरी में देरी और भूमि अधिग्रहण जैसी समस्याए भारतीय उद्योगपतियों के लिए सिर दर्द हैं |
तो क्या आज हमारे देश में ईमानदारों का रहना मुश्किल हो गया है ? क्या ईमानदार भारत में नहीं टिक सकते ????????? मेरी एक रिश्तेदार अमेरिका में रहती हैं अभी कुछ दिन पहले भारत आने पर उनसे बातों ही बातों में पता चला कि उन्हें अपनों से अलग रहने का दुःख सालता तो है किन्तु वह भारत इसलिए नहीं आना चाहती कि यहाँ कदम- कदम पर बहुत मुश्किलें हैं कोई भी काम आसानी से नहीं हो पाता |
यह सच है कि पैसे वालो की इस दुनिया में अमीर चाहे इस देश में रहे या परदेस | लेकिन अगर अमीर ईमानदार का भारत में टिकना मुश्किल है तो बेचारे गरीब ईमानदार को अपने ही देश में टिकने के लिए कितनी मशक्कत करनी पड़ती होगी | पग -२ पर रोजी-रोटी ,बच्चो की पढ़ाई इत्यादि के लिए न जाने कितना संघर्ष करना पड़ता होगा |
अब प्रश्न यह उठता है कि क्या आज हमारे देश को एक भ्रष्ट देश का तमगा भी इसीलिए मिला है कि आज के इन हालात मे ईमानदारी की डगर बहुत कठिन है और इसीलिए शायद दांये -बांये चलना एक मजबूरी हो जाती है , क्या वाकई , अन्ना बन कर रहना अब मुश्किल है ? तब फिर, ” सारा देश है अन्ना -अन्ना ” की गूंज मात्र एक क्षणिक जोश भर था |
दूसरा सवाल यह उठता है कि वैसे तो बेचारे लोकपाल बिल का बंटाधार हो गया है और अगर हमारी खुशकिस्मती से भविष्य मे आ भी गया तो क्या करेगा लोकपाल ? भ्रष्टाचार के लिए बने आज तक के कानून से क्या हासिल किया है हमने ? कितने भ्रष्ट ,बेईमान पकड़े गये ? अब तो चोर -२ नही चोर -कोतवाल मौसेरे भाई वाला हाल है | वर्तमान परिस्थितयों मे ईमानदारी फक्र नही एक फ़िक्र है |
सबसे अहम सवाल मेरा उद्योगपति भाइयों से है कि क्या अगर हमे अपने ही घर मे कोई कष्ट व परेशानी होती है तो क्या हम अपना घर छोडकर भाग जाते है? नही न ,बल्कि उन समस्यायों का निराकरण करने का प्रयास करते है क्योकि हम अपने परिवार व घर से एक अटूट रिश्ते से बंधे होते है इसी तरह हम अपने देश , अपनी धरती से भी एक अटूट रिश्ते से बंधे है हम दुनिया के किसी भी कोने मे जाये हम कहलायेंगे हिन्दुस्तानी ही | ठीक है , आज समस्याएँ है , मतिभ्रष्ट बेइमानो ने ईमानदारी से जीना मुश्किल कर दिया है किन्तु हमे लड़ना है और बुराई की उम्र बहुत लम्बी नही होती , जीत सदा अच्छाई की ही होती है अत: मेरा बड़े -२ पूंजीपतियों और उद्योगपतियों से करबद्ध निवेदन है कि देशहित व कल्याण के लिए कृपया अपना देश छोडकर भागे नही बल्कि समस्त समस्याओं से लड़ते हुए अपने ही देश मे उद्योग -धंधे विकसित करे जिससे देश की अर्थव्यवस्था और मजबूत हो सके और हजारो बेरोजगारों को रोजगार भी |
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