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जी हाँ, हम कह सकते है कि सोच तो है किन्तु शायद इतना होना ही पर्याप्त नही है क्यों कि अगर कही सोच है तो लोच भी है और हमारे देश मे अगर लोचा है तो फिर भला हमारा सोचा कैसे हो सकता है | इस सोच और इस लोच का खामियाजा आज आजादी के इतने साल बाद भी महिलाये कैसे झेल रही है, इसका एक वाकया मैं आपको बताती हूँ| अभी कुछ दिन पहले हमारी कामवाली बाई ने अपनी बिटिया की शादी की थी| एक दिन मैंने उससे उसकी बेटी का हाल जानने के लिए पूछा -अरे बता, तेरी बिटिया ससुराल मे ठीक से तो है लेकिन उसके उत्तर से आहत मेरे मन मे कई प्रश्न स्वतः ही खड़े हो गए | उसने कहा- [ मेमसाहिब अऊर सब तो ठीक हवे, लेकिन ओके घरे कौनो टॉयलेट नाही हवे ………………हमार बिटिया बीमार पड़ जाइ ] मतलब,उसने मुझसे कहा -“मेमसाहब और सब तो ठीक है लेकिन उसके घर पर कोई टॉयलेट नही है | यहाँ, हमारे पास तो उसे ऐसी कोई परेशानी नही थी इसलिए उसकी आदत भी नही है किन्तु वहाँ सबेरे अँधेरे मे ही खेत जाना पड़ता है नही तो,वह सारा सारा दिन कुछ भी नही खाती कि दिन चढ़े खेत नही जा सकते है | मेमसाहब,आप बताओ शौच न जाने के डर से खाना नही खाना,ये सब कहाँ तक ठीक है और अगर ऐसा ही होता रहा तो हमारी बिटिया बीमार पड़ जाएगी| ऐसा कह वह रुआंसी हो गई |
शहरों व गावों मे गरीब तबके के लोगो को इस समस्या से दो -चार होना पड़ता है, इस सत्य से तो मैं अवगत थी लेकिन इन सब के पीछे कितनी शारीरिक व मानसिक पीड़ा होती है इसका कटु अहसास मुझे आज ही हुआ था |
अगर हम देखे तो हमारे स्वास्थ का सीधा सम्बन्ध शुद्ध जल व स्वच्छ शौचालय से है | हमारे देश मे बहुत सी बीमारियो का कारण अशुद्ध जल, शौचालय की अनुलब्धता, मानव मल का समुचित निस्तारण न होना और व्यक्तिगत स्वच्छता का अभाव ही है|
गत २ अक्टूबर को दिल्ली मे राजघाट पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी द्वारा जो स्वच्छ -भारत अभियान की शुरुआत की गई वो निश्चय ही वंदनीय है| इसके लिए सभी देश वासियो के सफल प्रयास की जरूरत है क्यों कि इसके पूर्व भी सन 1986 मे central rural sanitation program का शुभारम्भ हुआ था तदुपरांत 1999 मे Total Sanitation Campaign और 2012 मे Nirmal Bharat Abhiyan की शुरुआत हुई | परन्तु ये हमारे देश का दुर्भाग्य है कि इन समस्त अभियानों को कोई खास सफलता नही मिल पाई और इसका मूल कारण यही है कि हमारे देश मे सोच तो है किन्तु लोच भी है और इसीलिए शौचालय नही है | ग्रामीण क्षेत्रो मे BDO ग्राम- पंचायत,अध्यक्ष सचिव और अन्य संबंधितजन इन सुविधाओ को प्रदान करने के एवज में लेन-देन करते है| असमर्थ, निर्धन ये लोग इसी कारण इन सुविधाओ से वंचित रह जाते है| ये कैसी विडंबना है कि देश में व्याप्त भ्र्ष्टाचार के कारण सरकारी योजनाये फ्लॉप हो जाती है| अतःयोजनाये बनती है,सरकारे आती है, जाती है किन्तु देश का गरीब, निर्धन परिवार आज भी कमोबेश उन्ही समस्याओ से जूझ रहा है अतः “जहाँ सोच हो और लोच न हो वहाँ शौचालय है|”
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