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कल सारी रात भी मै ठीक से सो न पाई | एक तो वृद्धावस्था की क्षीण काया ऊपर से ये दमे का रोग | रात भर खांसते-खांसते दम निकल जाता है |
कितनी राते हो गई ऐसे ही बैठे और बैचेनी मे काटते हुए | समझ मे नही आ रहा था कि क्या करू, नीलेश भी तो बहुत बिजी रहता है बार-बार उसको
परेशान करना अच्छा भी नही लगता |
तभी याद आया – “कल ही तो मेरे कानपुर वाले देवर के बेटे का मैसेज आया था –
” कागज उठाकर लिख दिया जो मैंने माँ का नाम,
कलम अदब से कह उठी हो गए चारो धाम” | ” हैप्पी मदर्स डे ” बड़ी माँ |
अचछा तो आज मदर्स डे है,” चिंतित मन को ये जानकर थोड़ी सी राहत मिली | मन ही मन सोचने लगी ,”आज तो नीलेश अवश्य आएगा” | बोल दूँगी, समय निकालकर मेरी दवा ला दें बेटा, कम से कम रातो मे ठीक से सो तो सकूँ |
अभी मानस -मंथन चल ही रहा था कि दनदनाते हुए काँधे पे लेपटॉप टाँगे , हाथो मे मोबाइल दबाये, लम्बे -लम्बे डग भरता हुआ मेरे बिस्तर के समीप आ
खड़ा हुआ वह |
अपने दाहिने हाथो को बढ़ाकर मेरे चरणो को छूने का उपक्रम करता हुआ मेरी तरफ एक सुन्दर सा गुलाब का बुके बढ़ाता हुआ बोला -”हैप्पी मदर्स दे माँ ”
और मेरे गालो पर एक हल्की सी थपकी दे बोला – माँ, कैसी है आप ?
जब तक मेरे हाथ आशीर्वाद के लिए उठते और मेरे मुख से कुछ शब्द निकलते तब तक उसके कदम वापस मुड़ चुके थे | मै भी पीछे से चिल्लाई , बेटा, मेरी दवा ला दे जरा अभी |
एक पल को रूककर वो बोला- माँ अभी, “अभी तो मेरे पास समय नही है ” कह, जल्दी से बाहर निकल गया |
मै हाथ मे पड़ी खाली शीशी और गोद मे पड़े खिले फूलो को देख सोचती रह गई कि क्यूँ हमारी भावनाएं ही मुरझा सी गई है | जीवन की इस भागम – भाग मे हम कही न कही अपने रिश्तो मे प्रेम, बंधन व आत्मीयता को पीछे छोड़ते जा रहे है |
आज बच्चो के पास सब कुछ तो है कार ,फ्लैट ,मोबाइल, कंप्यूटर सब कुछ | नही है, ” तो सिर्फ समय “| किन्तु मेरे बच्चे, इन फूलो को खरीदते समय तूने अपने कीमती समय व धन दोनों का दुरूपयोग ही किया, इनका सदुपयोग तू कर सकता था, बशर्ते दो मिनट के लिए अपनी माँ की जरूरत को पूछ लेता तो मेरे हाथ मे इस समय ये खाली शीशी न पड़ी होती |
काश , संदेशो और उपहारों से “हैप्पी मदर्स डे” मनाते ये बच्चे इतना तो सोच सके कि उनकी माँ हैप्पी है या…………? दिन- प्रतिदिन मुरझाते इस बूढ़े शरीर को भला महकते फूलो की क्या जरूरत ?
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